Thursday, April 15, 2010

महाराष्ट्र में बे वक्त होने वाली बरसात ने परेशान किया हैं कभी पूरा राज्य सुखा पड़ा होता हैं तो कभी कभार बे वक्त सब जगहों पर पानी ही पानी । इस बे वक्त आनेवाले बरसात ने जन जीवन तहस नहस कर दिया हैं । भारत एक कृषि प्रधान देश हैं लेकिन इस सूखे और बेवक्त बरसात उपरसे महगाई ने मानो आम जनता के साथ साथ किसनोकी वही कमर तोड़ दी कही पर तो इस बरसात का फायदा होता हैं तो कही पर भारी मात्र में नुकसान , कुदरत के इस कहर के लिए किसी न किसी हद तक हम भी जिमेदार हैं । यह जानते हुए भी दुनिया का सबसे स्वार्थी जिव इन्सान पीछे नहीं हटता। और फिर कुदरत को ही दोष देता हैं
शिर्डी से सुनील दवंगे समय मुंबई

Wednesday, April 14, 2010

सहारा समय न्यूज़ ९ करोड़ ९ लाख ९ दिनों में साईं बाबा के तिजोरी में

शिरड़ी के साईं बाबाकी हुंडी में नये सालकी छुटीयोमे ९ दिनोमे ९ करोड़ ९ लाख रुपया निकला यह एक जादुई आकड़ा बताया जा रहा हैं । साईं बाबाने अपने महा निर्वाण के समय लक्ष्मी बाई शिंदे को भी ९ चदिके सिक्के दिए थे इस लिए यह आकड़ा बोह्थी शुभ मन जाता हैं ।
जानवर हो या इन्सान हर किसीको जन्म के बाद जिनके लिए प्रकुर्तिसे लढनेकी शक्ति माँ की कोक से मिलती है . इसी प्रकार अहमदनगर जिलेके संगमनेर में खांडवा गाव में तिन तेंदुवेके नवजात शिशु कई दिनोसे कड़ी धुपमें प्रकृति से माँ के बिना जीवन जीने के लड़ रहे हैं । एक किसान की खेतिमे गंनेकी फसल कटते हुए ये तिन प्यारे शावक मिले । अपनी माँ के बिछड़ने के बाद तीनो शावक मायूस दिखाई दे रहे हैं । तो दूसरी तरफ इनको अपनी माँ से मिलाने के लिए किसान जी तोड़ मशागत कर रहे हैं । लेकिन शावको की माँ डर के मारे इनसे मिलने नहीं आ रही हैं । यह किसान इन शावको को अपने बच्चे जैसा प्यार कर हैं । लेकिन कोई कितना भी प्यार करे माँ की ममता नहीं दे सकता क्यों की दुनिया ने सबसे गहरा रिश्ता होता हैं माँ और बेटे का इसकी का अनुभूति यह दिखाई पड़ती हैं । जंगल में पीनेका पानीकी किल्लत की वजहसे अब वन्य जिव लोक बस्ती की और चल पड़े हैं । इसीलिए अब एन वन्य जिवोका जन्म लोक बस्ती में हो रहा हैं । एनी इस हालत के लिए कही न कही हम इन्सान जिमेदार हैं यह सीधी बात हम भूल जाते हैं । इन नन्हे शावक इन्सान की तरफ देख ते रहते हैं और यह बेजुबान शायद कह रहे हो की हम भी इस प्रकृति के अंश हैं ,हमे भी जिनका आधिकार हैं,हमे भी माँ की ममता की जरूरत हैं लिकिन हो सकता हैं हम ही नही सुन प् रहे हो । महाराष्ट्र में वनमंत्रलय स्वतंत्र होते हुए भी वन्य जियोकी यह दशा हो यह एक शोकांतिका हैं दूसरा क्या ?