Wednesday, April 14, 2010

जानवर हो या इन्सान हर किसीको जन्म के बाद जिनके लिए प्रकुर्तिसे लढनेकी शक्ति माँ की कोक से मिलती है . इसी प्रकार अहमदनगर जिलेके संगमनेर में खांडवा गाव में तिन तेंदुवेके नवजात शिशु कई दिनोसे कड़ी धुपमें प्रकृति से माँ के बिना जीवन जीने के लड़ रहे हैं । एक किसान की खेतिमे गंनेकी फसल कटते हुए ये तिन प्यारे शावक मिले । अपनी माँ के बिछड़ने के बाद तीनो शावक मायूस दिखाई दे रहे हैं । तो दूसरी तरफ इनको अपनी माँ से मिलाने के लिए किसान जी तोड़ मशागत कर रहे हैं । लेकिन शावको की माँ डर के मारे इनसे मिलने नहीं आ रही हैं । यह किसान इन शावको को अपने बच्चे जैसा प्यार कर हैं । लेकिन कोई कितना भी प्यार करे माँ की ममता नहीं दे सकता क्यों की दुनिया ने सबसे गहरा रिश्ता होता हैं माँ और बेटे का इसकी का अनुभूति यह दिखाई पड़ती हैं । जंगल में पीनेका पानीकी किल्लत की वजहसे अब वन्य जिव लोक बस्ती की और चल पड़े हैं । इसीलिए अब एन वन्य जिवोका जन्म लोक बस्ती में हो रहा हैं । एनी इस हालत के लिए कही न कही हम इन्सान जिमेदार हैं यह सीधी बात हम भूल जाते हैं । इन नन्हे शावक इन्सान की तरफ देख ते रहते हैं और यह बेजुबान शायद कह रहे हो की हम भी इस प्रकृति के अंश हैं ,हमे भी जिनका आधिकार हैं,हमे भी माँ की ममता की जरूरत हैं लिकिन हो सकता हैं हम ही नही सुन प् रहे हो । महाराष्ट्र में वनमंत्रलय स्वतंत्र होते हुए भी वन्य जियोकी यह दशा हो यह एक शोकांतिका हैं दूसरा क्या ?

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